माँ...





माँ संवेदनशील थी।
पापा गुसैल, शराबी, आंसुओं से सख्त़ नफ़रत करने वाले।
गुस्से में अनाप-शनाप बक देते थे।
सूर्यास्त पूरब में होता है भी कह दिए तो उनके हाँ में हाँ मिलाना जरूरी।
माँ को पापा से कुछ पूछना होता तो, प्याज़ काटते वक्त़ ही पूछती थी।
उस वक्त़ नासमझ था। बरसों बाद आज भेद खुला।
गज़ब की टायमिंग थी माँ की।


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