-रंगमंच-





नवरात्रि की आख़री शाम। सूरज ढलते ही निकल पड़ा, सैर पर। हर तरफ़ उत्साह और उमंग का माहौल। गरबा गाईज़, सज़ धज़ कर चल पड़े थे। कुछ अप्सरायें इंद्र देव से इजाज़त लेकर खास पधारी थी धरती पर। तरह तरह के लोग। हर किसी की खुशी की परिभाषा अलग अलग। कोई पचास रूपये खर्च कर भी महाप्रसाद में नमक कम होने की शिकायत कर रहा है। दुसरी ओर कतार में लगकर,मुफ्त़ की प्रसाद पाकर, उसपर तूट पड़ने वाले वो लोग,
जिनके लिए भूख ; स्वाद से उपर है।
हर किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता...
माता के पंडाल के इर्द गिर्द कुछ दुकानें हैं। खिलौनों की, सस्ती किताबों की जहाँ आपको मुकेश के सदाबहार नगमों से लेकर, How to make people love you तक बुकर प्राप्त किताबें मिल जाएंगी।। यह एक छोटी अर्थव्यवस्था है जो सिर्फ़ त्योहारों में पनपती हैं। RBI के रेपो रेट कम या ज्यादा होने से इन्हें रत्तीभर भी फ़र्क नहीं पड़ता।
रेपो रेट होता क्या है? उसका इन्हें ज़रा भी इल्म नहीं।
अब गीता सार पर गौर किए तो, जो हो रहा है वो अच्छा हो रहा है। बचपन की कुछ मीठी यादें दस्तक दे गईं। गॅस वाला गुब्बारा मुश्किल से ही नसीब होता था उस वक्त। ठीक वैसेही जैसे चुनाव आने पर ग़रीब के थाली में पुलाव आता है।
आज, एक कान्वेंट का बच्चा अपने बाप से कहता है,
Dad, you know what, Helium gas is used to fill this type of balloons.
हद हो गई। माना की जनरेशन आगे हैं, पर वही गुब्बारा खरीद लेते तो ! दिलचस्पी भी कोई चीज़ है।
खैर, खुशियाँ नापने के ईकाई सबकी अलग अलग।
एक तरफ़ करोड़ो का कारोबार संभालने वाला सेठ Swift में एक डेंट आने पर आपे से बाहर हो जाता है, और वही दूसरी ओर, एक आदमी 25 गुब्बारें बेचने के लिए लाता है।
उसमें से 5 गुब्बारें, सांसे कैद करते वक्त़ ही निपट जाते हैं। फिर भी, बचे 20 में से बिकते हैं, कुछ 7 या 8
इसके बावजूद, वो खुश है।
एक बीड़ी सुलगाते हुए,
उड़ा रहा है,
हर फ़िक्र को धुए में।
बाबू मोशाय,
हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं।




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