कोई हिंदू था। कोई मुसलमान। कोई सिख, तो कोई ईसाई।
विभिन्न धाराएं जंग के समंदर में जा मिली।
ये जो मुल्क़, मज़हब, की बात कर रहे थे, खामोश थे। जब सुर्ख़ लहू बहकर मिट्टी में जा मिला, तब मिट्टी ने तो नहीं पूछा,
"जरा अपना वीज़ा दिखाना, गैर मज़हब का हुआ तो पनाह नहीं मिलेगी।"
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